यीशु का जन्म और मरियम-यूसुफ का बड़ा दिन
यीशु का जन्म और मरियम-यूसुफ का बड़ा दिन । यीशु – मानव सभ्यता के इतिहास में बिना किसी संदेह के सबसे अधिक सम्पूर्ण विश्व में आदरणीय व सम्मानित व्यक्तित्व की इस जगत में एक अद्भुत उपस्थिति हैं। यीशु ने ईश्वरीय उपदेश के द्वारा अपने समय में केवल यहूदियों को ही नहीं बल्कि समस्त दुनिया को प्रभावित किया और मानव को अपने पापों से बचाने के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया।
हमारे परम मुक्तिदाता यीशु के द्वारा पवित्र शास्त्र बाईबल से लिये गए कुछ रोचक तथ्य व उनके उपदेश और शिक्षा जिनका सभी को अनुसरण करना चाहिए ।
तथ्य
पवित्र शास्त्र बाईबल में यीशु के जन्म की तारीख या समय का उल्लेख कहीं नहीं पाया जाता है। विद्वानों व इतिहासकारों के अनुसार चौथी शताब्दी में चर्च ने 25 दिसंबर को यीशु का जन्म दिवस मनाने का निर्णय लिया। लेकिन अभी भी अनेक विद्वानों व इतिहासकारों मत है कि 25 दिसंबर यीशु का जन्म दिवस नहीं है।
मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है कि इस पर किसी वहस की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, सत्य तो यही है कि यीशु का जन्म हमारे लिए ही हुआ।
रोमियो 14:5-6
मैं संत पौलुस के द्वारा रोमियों को लिखे पत्र में वचन… “कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले। “…..जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जा नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है”।-रोमियो 14:5-6
इस बहस को समाप्त करने के लिए काफी है।
आज भी कुछ लोगों को यह विचार करने और भरोसा करने में थोड़ा मुश्किल लग सकता है, लेकिन यही सत्य है कि यीशु का जन्म एक कुंवारी कन्या मरियम के द्वारा हुआ था| वह परमेश्वर की इच्छा अनुसार पवित्र आत्मा के द्वारा चमत्कारिक रूप से मरियम के गर्भ में आए थे।
रोमन राजा हेरोदेस जिसका यहूदियों के ऊपर शासन था, उसने आज्ञा दी थी कि आसपास के सभी राज्यों में जो भी नवजात शिशु हो उन सभी को मार दिया जाए। क्योंकि उसने यीशु देखा नहीं था, और उसे यह डर सताने लगा था कि उसे अपना सिंहासन यहूदियों के एक नवजात राजा (यीशु) को न देना पड़ेगा।
यहाँ पर यह भी बताना चाहूंगा, कि परमेश्वर के पुत्र यीशु को नीली आँखें, लंबी दाढ़ी और लंबे बाल वाले अनेकों चित्रों में चित्रित किया गया है। क्या इन चित्रों का कोई स्पष्ट महत्व है, या यह केवल एक कलाकार की कल्पना मात्र है? क्योंकि पवित्र शास्त्र बाईबल में यीशु के वास्तविक स्वरूप का कोई भी संदर्भ नहीं पाया जाता है, और यीशु की पहली पेंटिंग 15 वीं शताब्दी में उनकी मौत व स्वर्गारोहण के बहुत लंबे समय बाद बनाई गई। इस प्रकार हमारे पास यीशु के वास्तविक रूप को जानने का कोई तरीका नहीं है कि वह वास्तव में कैसा दिखता है।
यीशु के माता पिता
मरियम की मंगनी यूसुफ नाम के व्यक्ति से हुई थी, जो दाऊद का वंशज व पेशे से बढ़ई था। यीशु के जन्म के बाद उनका विवाह हुआ, यीशु के दत्तक-पिता यूसुफ बढ़ई के काम में बहुत हुनरमंद थे। वह बहुत ही गरीब थे और मेहनत करके अपने परिवार का गुज़ारा-बसर करते। आगे चलकर देखते हैं कि उसके पांच बेटों का जिक्र पवित्र बाईबल में मिलता है। और उनकी दो बेटियां भी थीं।
यूसुफ भी मरियम की तरह आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
इसलिए, प्रत्येक वर्ष फसह का पर्व (यहूदी परम्परा का मनाया जाने वाला एक बड़ा त्योहार) मनाने तथा उस समय होने वाली जनगणना के कारण यरूशलेम अवश्य जाना था। उस समय मरियम को नौ महीने का गर्भ होने के कारण बहुत तकलीफ हो रही थी, लेकिन फिर भी यूसुफ ने कैसर का हुक्म मानते हुए, यूसुफ ने अपने पूर्वजों के शहर, यरूशलेम तक की यात्रा कठनाइयों का सामना करते हुए पूरी की।
लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे, तो उस समय वहां बहुत अधिक भीड़ होने के कारण शहर में उन्हें ठहरने की कोई जगह नहीं मिली। इसलिए ऐसी परिस्थितियों में मजबूर होकर उन्हें एक पशुशाला में ही ठहरना पड़ा। वहीं पर यीशु का जन्म एक चरनी में हुआ।
यदि हम लोग परमेश्वर से कुछ पाने की इच्छा रखते हैं तो जीवन में आने वाली कठनाइयों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जैसे यूसुफ और मरियम ने भी किया, और इन्हीं कठनाइयों के बाद यीशु के जन्म के कारण उन दोनों के लिए (क्रिसमस) बड़ा दिन हो गया।
यीशु के उपदेश व शिक्षा से क्या हम सभी लोग जो यीशु पर विश्वास करते हैं, और जन्मदिन, क्रिसमस मनाते हैं, अपने जीवन को प्रभावित होने दिया है, या व्यर्थ ही क्रिसमस की शुभकामनाएं एक दूसरे को बांट रहे हैं।
आओ- हम अपने आप को जाँच कर देखें कि हम यीशु की शिक्षा का कितना अनुसरण करते हैं?
यीशु की शिक्षा व पवित्र शास्त्र बाईबल उपदेशों का अनुसरण करना ही सही मायने में यीशु का जन्मदिवस या (क्रिसमस) मनाना है। तभी हम सभी के लिए हर दिन, बड़ा दिन होगा। आओ हम बाईबल में जो आज्ञा, नियम, विधि, परमेश्वर पिता और हमारे मुक्तिदाता प्रभु यीशु ने हमसे जिनका पालन करने के लिए कहा है। उनका पालन आनन्द व सच्चाई के साथ करें, जैसे मरियम-युसुफ ने आज्ञाओं का पालन किया और उनके लिए यीशु का जन्म बड़ा दिन हो गया। वैसे ही परमेश्वर की आज्ञा पालन करने से हमारे लिये भी बड़ा दिन होगा ।
रेव्ह. बिन्नी जॉन “शास्त्री जी”
धर्मशास्त्री, अंकशास्त्री
परमेश्वर की आज्ञा
1. जिस तरह से पिता ने मुझसे प्रेम किया है ठीक उसी प्रकार मैंने भी तुमसे प्रेम किया है|
2. मनुष्यों को एक-दूसरे की सेवा करनी चाहिए । यही परमेश्वर की सच्ची सेवा है । स्वार्थ भावना का त्याग करो।
3. जो शरीर को मारते हैं, परंतु आत्मा को नहीं मार सकते, उनसे मत डरना, पर उससे डरो जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में कष्ट कर सकता है ।
अर्थात परमेश्वर से डरें।
4. जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति है, तो उनका भला करने से न रूकना।
5. मैं प्रभु से एक चीज मांगता हूँ, मुझे बस इसी की तलाश है: कि मैं आजीवन प्रभु के भवन में रह सकूँ, टकटकी लगा कर उनकी सुन्दरता देखता रहूँ और उनके मंदिर में उनकी प्रार्थना करता रहूँ।
6. ध्यान से देखो ! मैं दरवाजे पर खड़ा हूँ और आपका दरवाजा खटखटा रहा हूँ. अगर कोई मेरी आवाज सुनकर दरवाजा खोलता है तो मैं अंदर आऊंगा और उसके साथ भोजन करूँगा और वो मेरे साथ करेगा.
7. अपने प्राण की चिंता मत करो कि हम क्या खाएंगे, न अपने शरीर की कि क्या पहनेंगे, क्योंकि भोजन, प्राण और वस्त्र से बढ्कर शरीर है ।
8. भला उस आदमी को क्या लाभ, यदि वह पूरी दुनिया पा जाये और अपनी आत्मा खोने की पीड़ा सहे?
9. चखो और देखो कि ईश्वर अच्छा है; धन्य है वो जो उसकी शरण में जाता है।
10. अपने दिल को मुश्किल में मत डालो. गॉड पर भरोसा रखो और मुझ पर विश्वास करो.
11. जो तुम्हें सुनता है, वह मुझे सुनता है, जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा तिरस्कार करता है और जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका तिरस्कार करता है जिसने मुझे भेजा है ।
12. मैं मार्ग हूँ, सत्य हूँ, और जीवन हूँ। मुझसे हुए बिना कोई पिता तक नहीं पहुँचता।
13. और हम जानते हैं कि हर चीज में भगवान् उनके भले की लिए काम करता है जो उससे प्रेम करते हैं, जिन्हें उनके मकसद के लिए बुलाया गया होता है।
14. उनको जो खुद की प्रशंसा करते है उनको विनम्र किया जायेगा और जो खुद को विनम्र करते है उनकी प्रशंसा होगी|
15. कृपा और सच्चाई तुझसे अलग न होने पाएं, वरन उनको अपने गले का हार बनाना और अपनी हृदय रूपी पट्टिका पर लिखना । ऐसे करने से तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा । तू अति बुद्धिमान होगा ।
16. यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो तो एक दूसरे की सह लो और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो, जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।
17. यदि परमेश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे खिलाफ हो सकता है?
18. परमेश्वर इस संसार से इतना प्रेम करते है की उन्होंने अपना इकलौता पुत्र दे दिया. वह जो इसमें यकीन करेगा वह मरेगा नहीं बल्कि उसका जीवन अमर हो जायेगा|
19. वह मनुष्य ही धन्य है जो बुद्धि पाए और समझ प्राप्त करे, क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चांदी की प्राप्ति से बड़ी है । उसका लाभ सोने के लाभ से भी उत्तम है और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उनमें से कोई शी उसके तुल्य न ठहरेगी ।
20. आप जैसे-जैसे उसमे भरोसा करें, आशा का देवता आपको सारी खुशियों और शांति से भर दे, ताकि आपके भीतर पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा उम्मीद का अतिप्रवाह हो सके।
21. जो तुमसे मांगता है उसे दे दो और जो तुम्हारा सामान ले जाए उसे दुबारा मत पूछो. जैसा व्यवहार आप उन लोगो से चाहते हो वैसा ही व्यवहार उनके साथ करो|
22. जिस किसी ने मेरे नाम के लिए अपने घरों या भाइयों, बहनों या पिता, माता या लड़के-बच्चों, खेतों को छोड़ दिया है । उसको सौ गुना मिलेगा और वह अनंत जीवन का अधिकारी होगा ।
23. हम परमेश्वर की संताने हैं, और हम जो होंगे वो अभी ज्ञात नहीं हो सका है! लेकिन हम जानते हैं कि जब मसीह प्रकट होंगे, हम उनकी तरह होंगे, क्योंकि हम उन्हें उस तरह देख पायेंगे जैसे वो हैं|
24. मैं आपको एक सच बताता हूँ.. एक अमीर व्यक्ति के लिए स्वर्ग में प्रवेश करना बहुत कठिन है. मैं एक बार फिर कहता हूँ.. अमीर व्यक्ति के लिए स्वर्ग में प्रवेश करने से आसान काम तो ऊंट का सुई के छेद से निकलना है|
25. मज़बूत और साहसी बनें। उनकी वजह से डरें या भयभीत न हों, क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे साथ जाता है; वह तुम्हें न कभी छोड़ेगा, न कभी त्यागेगा।
26. मैं तुमसे इसलिए कहता हूँ.. मांगों तुम्हे दे दिया जायेगा, खोजो तुम्हे मिल जायेगा, खटखटाओ दरवाजे खुल जायेंगे|
27. तुमसे कहता हूँ की अपने दुश्मनो से प्यार करो और उनके लिए प्रार्थना करो जो तुमको सताते है. इससे तुम उस पिता की संतान बन जाओगे तो स्वर्ग में है. वह अपना सूर्य बुराई और अच्छाई दोनों पर डालता है और न्यायी व अन्यायी दोनों पर अपनी वर्षा करता है|
28. तुम्हे व्यभिचारिता नहीं करनी चाहिए, तुम्हे हत्या नहीं करनी चाहिए, तुम्हे चुराना नहीं चाहिए, तुम्हे लालच नहीं करनी चाहिए और तुम्हे अपने पडोसी को अपना समझकर प्रेम करना चाहिए|
29. अगर आप एकदम सही होना चाहते हो तो जाओ अपनी सारी सम्पत्ति को गरीबों मे बाँट दो. तुम्हे स्वर्ग का खजाना मिल जायेगा|