विश्वास को बनाये रखने के 7 कारण
विश्वास को बनाये रखने के 7 कारण। जब कभी भी आप “विश्वास” या “भरोसा” शब्द को सुनते या बोलते हैं, तो आप क्या सोचते हैं? आप इसे महसूस करें या न करें, विश्वास केवल आपका यह कहना कि में परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, यह विश्वास नहीं है, यह कहने वाले तो सभी लोग हैं ।
विश्वास का महत्व तब है जब यह आपके जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हो। उदाहरण के लिए, हर बार जब आप कभी भी बस, रेल, हवाई जहाज से यात्रा करते हैं तो आपको विश्वास होता है कि वह साधन जिससे आप यात्रा कर रहे हैं वह आपको आपके गंतव्य स्थान ही पहुँचायेगा । आप इसमें कभी भी संदेह नहीं करते हैं । ऐसा ही विश्वास परमेश्वर पर होना चाहिये ।
विश्वास की परिभाषा
यही विश्वास की परिभाषा है –
आप जिस भी कार्य की उम्मीद कर रहे हैं, उसके बारे में सुनिश्चित होना – जो आपने अभी तक नहीं देखा या जिसका अनुभव नहीं किया है, उसके बारे में निश्चित होना ही विश्वास है । बाईबल आधारित विश्वास यह है :- “आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण” के रूप में परिभाषित करती है । (इब्रानियों 11:1)
1. विश्वास के बिना, परमेश्वर को खुश करना असंभव है ।
परमेश्वर पर विश्वास क्यों जरूरी है? क्योंकि इसके बिना हम परमेश्वर को प्रसन्न (खुश) नहीं कर सकते।
इब्रानियों 11:6 कहता है, “परन्तु विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”
आओ वचन को ग्रहण करें – परमेश्वर में विश्वास करना यानि कि जिसे हम नहीं देख सकते हैं और विश्वास करते हैं कि वह जो कहता है वह हमारे विश्वास के द्वारा मिल गया है! यही विश्वास परमेश्वर को प्रसन्न करता है।
2. यीशु ने हमारे विश्वास के स्तर को जांचा किया ।
मत्ती की पुस्तक में, हम दो अलग-अलग लोगों को दो भिन्न विश्वास स्तरों के साथ देखते हैं।
मत्ती 15:28: “यीशु ने उत्तर देकर उस से कहा, हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है! जैसा तू चाहती है, वैसा ही तेरे लिए हो; और उसकी बेटी उसी घड़ी से चंगी हो गई।”
मत्ती 14:31: “और यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लिया, और उस से कहा, हे अल्प विश्वासी, तू ने सन्देह क्यों किया?”
वह स्त्री एक कनानी थी, जिसे यह विश्वास था कि यीशु ही उसकी बीमार बेटी के लिए एकमात्र आशा है। वह इस समय यीशु से जवाब के लिए “नहीं” नहीं सुनना चाहती, इसलिए यीशु – उसके विश्वास से प्रेरित हुए – और उस स्त्री का अनुरोध स्वीकार कर लिया और उसकी बेटी चंगी हो गई ।
कम विश्वास वाला व्यक्ति पतरस था, जो कि यीशु का अपना शिष्य था! यीशु पानी पर चल कर आ रहा था और उसने पतरस को अपने पास आने का न्यौता दिया; पहले पतरस को पानी पर यीशु के पास चलने का विश्वास था, लेकिन जब उसकी नज़र हवा और लहरों पर पड़ी, तो अन्दर डर समा गया और डूबने लगा। हमें भी अपने हालात के बजाय, यीशु पर नज़र रखने की ज़रूरत है – इससे मुश्किलों में हमारा विश्वास अधिक मज़बूत रहेगा।
3. हमारा विश्वास ही परमेश्वर को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ।
परमेश्वर के प्रति विश्वास क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि विश्वास – हमारे जीवन की आवश्यकता है, संदेह या भय – हमारे अविश्वास को बढ़ाता है।
मरकुस 2:5 कहता है, “जब यीशु ने लोगों के विश्वास को देखा, तो उस ने लकवे के मारे हुए से कहा, हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।” लंगड़ा उठा, अपनी चटाई पकड़ी, और घर चला गया! इस पर ध्यान करें, जब यीशु ने लंगड़े के मित्रों का विश्वास देखा ।
एक मसीह के रूप में, हम अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, उससे हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए, हमारे शरीर या रिश्तों को ठीक करने के लिए, या हमें ज्ञान देने के लिए कहते हैं।
लेकिन जैसा कि याकूब 1:5-7 कहता है, जब तक हम बिना किसी संदेह के विश्वास से नहीं मांगते, हमें वह नहीं मिलेगा जो हम मांग रहे हैं। विश्वास हमारी आपूर्ति का आधार है ।
4. परीक्षाओं के समय विश्वास हमें अधिक मज़बूत करता है ।
हम एक पापी, पतित संसार में निवास करते हैं, हमें कठिनाइयों का सामना करना ही होगा। लेकिन हमारा परमेश्वर पर विश्वास ही है जो हमें कठिन समय में मजबूत बने रहने में हमारी मदद करता है। यह न भूलें हमारा एक शत्रु है, और यह हमारा विश्वास ही है जो हमें उसकी योजनाओं और षडयंत्रों से बचाने के लिए एक ढाल के रूप में कार्य करता है:
“सबसे ऊपर, विश्वास की ढाल को लेकर स्थिर रहो, जिसके साथ आप उस दुष्ट के सभी जलते हुए तीरों को बुझा सको” । ( इफिसियों 6:16)
जब हमारे विश्वास की परीक्षा होती है, तो हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए; याकूब 1:3 कहता है कि “तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।” जब हम परीक्षाओं के द्वारा विश्वास में दृढ़ रहते हैं, तभी परमेश्वर को महिमा मिलती है:
“ताकि तुम्हारे विश्वास की सच्चाई, जो की ताये हुये सोने से भी अधिक कीमती है, चाहे वह सोने के समान आग से परखा जाए, लेकिन प्रगट होने पर प्रशंसा, सम्मान और महिमा पाई जाए।” (1 पतरस 1:7)
5. विश्वास को जीवंत रखने का ईंधन जो हम करते हैं
हम जो कार्य करते हैं और कैसे जीते हैं, उसके द्वारा हम परमेश्वर में अपना विश्वास प्रदर्शित करते हैं।
याकूब 2:26 कहता है, “क्योंकि जैसे देह आत्मा के बिना मरी हुई है, वैसे ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।”
इसे कैसे समझें: विश्वास और कार्य (कर्म) आपके जीवन की नाव में एक चप्पू के समान हैं। वे आपको आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करते हैं। यानि चप्पू का एक भाग पानी में, एक आपके हाथ में है ।
वास्तविक (सच्चे) विश्वास की पुष्टि निम्नलिखित कार्यों से होती है; वैसे ही बिना विश्वास के किए गए कार्य बेकार हैं। हमें हमेशा विश्वास में कार्य करना चाहिए!
याकूब इसे इस प्रकार समझते है: “इस प्रकार विश्वास भी यदि कर्म के बिना हो, तो वह मर जाता है। परन्तु कोई कहेगा, कि तुझे विश्वास है, और मुझ में कर्म हैं। अपना विश्वास अपने कर्मों के बिना मुझे दिखा, और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊंगा” (याकूब 2:17-18)।
6. हमारा विश्वास से दूसरों का हौसला बढ़ सकता है
अटल विश्वास ही ध्यान देने योग्य है, और यह दुसरे लोगों को भी अपने विश्वास में दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
कुलुस्सियों 1:3-4 कहता है, “हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
क्योंकि हम ने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो।”
जब आप दूसरों लोगों को ऐसा करते हुए देखते हैं तो परमेश्वर में विश्वास के प्रति प्रतिबद्ध रहना और भी आसान हो जाता है। अपने विश्वास में दृढ़ रहने का चुनाव करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें!
तीमुथियुस एक युवा सेवक था, जिसे प्रेरित पौलुस द्वारा सलाह दी जा रही थी। 2 तीमुथियुस 1:5 में पौलुस कहता है, “मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहिले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्चय हुआ है, कि तुझ में भी है।
जब हमारा विश्वास मजबूत और सच्चा होता है, तो यह हमारे परिवार और मित्रों सहित अन्य लोगों को भी दिया जा सकता है, जो उनके जीवन में भी बदलाव ला सकते हैं।
7. विश्वास मोक्ष, उद्धार, छुटकारे की नींव है
जब प्रभु यीशु पृथ्वी पर चला, तो यहूदी लोगों को यकीन था, कि उन्हें परमेश्वर को स्वीकार्य होने के लिए व्यवस्था के सभी नियमों का पालन जरूरी है । लेकिन जब प्रभु यीशु आया, तो उसने धार्मिकता को नये रुप से परिभाषित किया: “… मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, परन्तु यीशु मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरता है, हम ने भी मसीह यीशु पर विश्वास किया है, कि हम मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें, न कि परमेश्वर के द्वारा व्यवस्था के काम…” (गलातियों 2:16)।
हम परमेश्वर के पुत्र अर्थात यीशु में विश्वास के द्वारा परमेश्वर के साथ सही बने हैं; हम जो कर्म करते हैं या नहीं करते हैं, उसके द्वारा हम परमेश्वर के ठीक सामने नहीं बने हैं। यह इस्राएलियों के लिए एक बेहद क्रांतिकारी बदलाव था। वे अपना उद्धार अर्जित करने के आदी थे।
लेकिन जैसा इफिसियों 2:8-9 घोषित करता है, “क्योंकि अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार विश्वास के द्वारा हुआ है, न कि तुम्हारी ओर से; यह परमेश्वर का दान है, कर्मों का नहीं, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।”
अंत में यही कहेंगे, हमें अपने विश्वास की रक्षा करनी चाहिए।
1 तीमुथियुस 6:11-13 हमें याद दिलाता है, “परन्तु, हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग जा और धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज, और नम्रता का पीछा कर। विश्वास की अच्छी लड़ाई लड़ो, अनन्त जीवन को थाम लो, जिसके लिए तुम भी बुलाए गए थे…”
हमें जीवन के उन तूफानों के दौरान जिनका हम सभी सामना करते हैं, अपने विश्वास को बनाए रखने के लिए लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, जो कि हमें पटरी से उतारने की कोशिश करेंगे। वास्तव में, जब हम परमेश्वर में अपने विश्वास को कर्म के साथ बनाए रखते हैं, तो यह हमें परमेश्वर की महिमा के लिए सबसे कठिन समय में परीक्षाओं में विश्वास के माध्यम से बनाए रखेगा।
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धर्मशास्त्री, अंकशास्त्री